E-Paperटॉप न्यूज़दुनियादेशधर्म

ये देश बनने वाला है इस्लामिक राष्ट्र! 90 प्रतिशत हो गई मुसलमानों की आबादी

बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने बुधवार को कोर्ट में धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने सहित व्यापक संवैधानिक परिवर्तनों की वकालत की है। सदुज्जमां ने 15वें संशोधन की वैधता पर एक अदालती सुनवाई के दौरान जस्टिस फराह महबूब और देबाशीष रॉय चौधरी के समक्ष अपने तर्क प्रस्तुत किए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि देश की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है।

एएनआई, ढाका। हिंसक छात्र आंदोलन के चलते गत पांच अगस्त को शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश अब इस्लामिक देश बनने की राह पर बढ़ता दिख रहा है। देश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने इसके लिए पैरवी की है। उन्होंने संविधान में बड़े बदलाव करने और धर्मनिरपेक्ष समेत कई प्रमुख शब्दों को हटाने का सुझाव दिया है।

90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम

उन्होंने कहा कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता उस देश की वास्तविक तस्वीर पेश नहीं करते, जहां 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। यूनाइटेड न्यूज आफ बांग्लादेश की खबर के अनुसार, असदुज्जमां ने समाजवाद, बंगाली राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्ष और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता की उपाधि देने जैसे प्रविधानों को हटाने का सुझाव दिया है।

संविधान संशोधन की वैधता

उन्होंने हाई कोर्ट में बांग्लादेश के 15वें संविधान संशोधन की वैधता पर चल रही सुनवाई के पांचवें दिन इस तरह की पैरवी की। उन्होंने मूल वाक्यांश को पुन: स्थापित करने की वकालत की, जिसमें अल्लाह पर अटूट विश्वास पर जोर दिया गया था। उन्होंने अनुच्छेद नौ में बंगाली राष्ट्रवाद की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाया और इसे आधुनिक लोकतांत्रित सिद्धांतों के साथ असंगत करार दिया। असदुज्जमां ने यह दलील दी कि ये बदलाव देश को लोकतांत्रिक और ऐतिहासिक चरित्र के अनुरूप बना देंगे।

चुनिंदा प्रविधान ही बरकरार

उन्होंने जनमत संग्रह के प्रविधान को फिर से लागू करने की अपील भी की, जिसे 15वें संशोधन में समाप्त कर दिया गया था। अटॉर्नी जनरल ने कार्यवाहक सरकार प्रणाली को खत्म करने के कदम का भी विरोध किया और कहा कि यह लोकतंत्र पर आघात है। आखिर में उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार 15वें संशोधन को मोटे तौर पर असंवैधानिक घोषित करना चाहती है और केवल कुछ चुनिंदा प्रविधानों को ही बरकरार रखना चाहती है।

बांग्लादेश छात्र आंदोलन

असदुज्जमां ने सुनवाई के बाद मीडिया से बात की और कहा कि 15वें संविधान संशोधन को बरकरार रखना मुक्ति संग्राम, 1990 के जन विद्रोह और इस वर्ष जुलाई में छात्र आंदोलन की भावना को कमजोर करता है। यह संशोधन अबू सईद और मुग्धो जैसे बलिदानियों के साथ विश्वासघात है।

बता दें कि बांग्लादेश में जुलाई में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में अबू सईद और मुग्धो जैसे छात्र शामिल थे। हिंसक छात्र आंदोलन के बाद शेख हसीना सरकार अपदस्थ हो गई थी और उन्हें देश छोड़कर भारत जाना पड़ा था। इसके बाद मोहम्मद यूनुस की अगुआई में अंतरिम सरकार बनी। इसी सरकार में असदुज्जमां को अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया गया था।

क्या है 15वां संविधान संशोधन

ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, बांग्लादेश की संसद में 30 जून, 2011 को 15वें संविधान संशोधन को पारित किया गया था। इसमें धर्मनिरपेक्षता को बहाल करने के साथ ही शेख मुजीबुर को राष्ट्रपिता की मान्यता दी गई थी, कार्यवाहक सरकार प्रणाली को खत्म किया गया था और संसद में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 45 से बढ़ाकर 50 की गई थी।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!