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इलाहाबाद हाईकोर्ट के ‘ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं’ वाले फैसले पर SC की रोक, असंवेदनशील और अमानवीय बताया

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था कि स्तन पकड़ना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना, बलात्कार के प्रयार का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है. Supreme Court ने इस टिप्पणी को असंवेदनशील बताया है. और फैसले पर रोक लगा दी है.

दिल्ली : कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के एक विवादित टिप्पणी वाले फैसले पर रोक लगा दी है. अपने फैसले में हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था कि स्तन पकड़ना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना, बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को असंवेदनशील बताया है. वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा था. इसी पत्र के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने हाईकोर्ट के इस विचार से अपनी कड़ी असहमति जाहिर की. उन्होंने इस आदेश को चौंकाने वाला बताया.

 

बेंच ने अपने आदेश में कहा,

हमें ये कहते हुए कष्ट हो रहा है कि इस विवादित फैसले में की गई कुछ टिप्पणियां फैसला लिखने वाले की असंवेदनशीलता को दिखाता है.

बेंच ने कहा कि ये फैसला अचानक नहीं सुनाया गया था. बल्कि करीब चार महीनों तक इसे सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया. इसका मतलब ये है कि न्यायाधीश ने उचित विचार-विमर्श और दिमाग लगाने के बाद फैसला सुनाया. पीठ ने कहा,

ये टिप्पणियां कानून के सिद्धातों से पूरी तरह परे हैं. और पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दिखाती हैं. इसलिए इस पर रोक लगाना मजबूरी है.

पीठ ने भारत सरकार, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया. इस सुनवाई के दौरान भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी कोर्ट में ही थे. उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले की निंदा करते हुए कहा कि ये चौंकाने वाला है.

 

क्या कहा था जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने?

जस्टिस मिश्रा ने टिप्पणी की थी,

पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना… बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.

मामला क्या है?

उत्तर प्रदेश के कासगंज के पवन और आकाश पर साल 2021 में रेप के प्रयास के आरोप लगे. आरोप के मुताबिक, दोनों ने एक नाबालिग लड़की को लिफ्ट दिया. इसके बाद पीड़िता के ब्रेस्ट को छुआ, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा और पुलिया के नीचे खींचा. पीड़िता को कुछ राहगीरों ने बचा लिया. आरोपी मौके से भागने पर मजबूर हो गए.

 

इन दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (रेप) और POCSO एक्ट (बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से सुरक्षा कानून) की धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ था. निचली अदालत ने दोनों को समन किया. आरोपियों ने हाईकोर्ट में इस समन को चुनौती दी. आरोपियों ने हाईकोर्ट में तर्क दिया था कि उनके खिलाफ जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है, वो उन पर लगे आरोपों से ज्यादा हैं. हाईकोर्ट ने भी इस पर सहमति दिखाई. और आरोपी पर धारा IPC की धारा 354-B (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के मामूली आरोप के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया था. इस आदेश के दौरान जस्टिस मिश्रा की विवादित टिप्पणी आई थी.

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